शनिवार, 10 अगस्त 2013

ये जवानी है दीवानी

विजय कुमार जायसवालये जवानी है दीवानी दो एकदम जुदा लड़का-लड़की के बीच की प्रेम कहानी है| फिल्‍म का नायक एक बेपरवाह, शरारती नौजवान है,कबीर थापर उर्फ बनी (रनबीर कपूर)एक बेफिक्र लड़का,जिसका सपना दुनिया घूमना है और जिसे शादी के बंधन में यकीन नहीं है, इसलिए उसे खूबसूरत लड़कियों से सिर्फ दोस्ती करना पसंद है| जो अपने सपनों को अपनी एक ही जिंदगी मे जी लेना चाहता है| वो अपने पिता (फारुख़ शेख़) और सौतेली मां (तन्वी आज़मी) के साथ रहता है| फिल्‍म में रनबीर कपूर यायावर हैं, उन अनेक युवाओं की तरह, जो एक-एक रुपया इसलिए बचाते हैं ताकि दुनिया देख सकें| नैना (दीपिका पादुकोण) जो बनी के ही स्कूल में पढ़ती थी और अब मेडिकल की पढ़ाई कर रही है और एक शर्मिली-पारंपरिक लड़की है| नैना की माँ का सपना अपनी इकलौती बेटी को डॉक्टर बनाना है। वो नहीं चाहती कि नैना स्टडी के अलावा कहीं और अपना ध्यान और वक्त लगाए। अवि (आदित्य रॉय कपूर) और अदिति (कल्की कोचलीन कश्यप) बनी के सबसे अच्छे दोस्त हैं\ अदिति को अवि से प्यार है लेकिन उसने ये बात कभी ज़ाहिर नहीं की\ उलझी हुई पर्सनेलिटी, विस्की और क्रिकेट मैच पर दांव लगाने वाला अवि, अदिति के इस प्यार को कभी उतना तवज्जो नहीं देता और अदिति के सबसे करीब होने के बावजूद भी वो दूसरी लड़कियों में उलझा रहता है\ अवि और अदिति, बनी के सबसे अच्छे दोस्त हैं\बनी, नैना, अवि और  अदिति एक ही कॉलेज से पढ़कर निकले हैं इसलिए एक दूसरे को जानते हैं \ एक दिन अदिति, नैना को एक मुलाकात में अपने मनाली ट्रिप के बारे में बताती है,नैना अपने ऊपर लगे मम्मी के प्रतिबंधों से परेशान है, जो उसकी आजादी छीनते हैं\ वो अब इन सब से एक ब्रेक चाहती है\ तो अचानक से तैयार होकर वो भी इनके साथ ट्रिप पर निकल पड़ती है\ जहां पर उसकी मुलाकात बनी से होती है \बन्नी से मिलने के बाद नैना को लगता है कि हर वक्त दूसरों के सपनों को पूरा करने के लिए भागने की बजाए उसे अपने लिए वक्त निकालना चाहिए।ट्रिप के दौरान बनी और नैना एक दूसरे का साथ पसंद करने लगते हैं हालांकि दोनों के बीच ज़रा भी समानता नहीं है\फिर एक दिन नैना, बनी के सामने अपना प्यार जताने ही वाली होती है लेकिन तभी पता चलता है कि बनी को शिकागो युनिवर्सिटी में छात्रवृत्ति मिल गई है\अब क्योंकि बनी को घूमने का शौक है इसलिए वो इस मौके को गंवाना नहीं चाहता और शिकागो चला जाता है\
आठ साल बाद बनी अपनी दोस्त अदिति की शादी के लिए भारत लौटता है जहां उसकी मुलाकात दोबारा नैना से होती है\एक बार फिर पुराना प्यार जागता है लेकिन नैना खुद को आगे बढ़ने से रोक लेती है क्योंकि बनी तो दुनिया घूमना चाहता है लेकिन वो अपने परिवार औऱ क्लीनिक (नैना अब डॉक्टर है) को नहीं छोड़ना चाहती\ लेकिन इस बार बनी, नैना के दिल का हाल पढ़ लेता है और उसे खुद भी प्यार हो जाता है \ इस बार बनी नैना को नए साल का सरप्राईज़ देते हुये उससे खुद ही प्यार का इजहार कर देता है और यहीं कहानी बनी और नैना के प्रेम मिलन पर खत्म होती है\
फिल्म का टेक्सचर औऱ मेकिंग काफी हद तक युवाओं को फोकस में रखकर किया है \संवाद लेखक ने अयान मुखर्जी की कहानी में अपने युवा और समकालीन डायलॉग से खूबसूरती बढ़ा दी है\जैसे- नैना की मां कहती है,‘जो लड़कियां ज्यादा आजाद होती हैं वह प्रेगनेंट हो जाती है’|नैना कहती है,‘बनी तू जितना भी ट्राई कर लाइफ में कुछ ना कुछ तो छूटेगा ही’| बनी कहता है,‘वक़्त किसी के लिए नहीं रुकता, बीतता वक़्त है लेकिन खर्च हम होते हैं’|बनी का यह कहना, फ्लर्ट सेहत के लिए अच्छा होता है’|चार दोस्तों के बीच की कैमेस्ट्री और उनके चुकटुले दोनों ही दर्शकों को शुरु के एक घंटे बांधे रखते हैं\इंटरवेल के बादउदयपुर में अदिति की शादी का उत्सव दर्शकों को बांधे रखता है पर थोड़ा लंबा खिच गया है \नैना का एक पढ़ाकू लड़की से जीवंत लड़की बनना या फिर बनी और नैना के बीच भावुक क्षण, ऐसे कई सीन है जो आपको बांधे रखते हैं\
ये जवानी है दीवानीका सबसे बेहतरीन हिस्सा है बन्नी और उसके जिगरी दोस्त अदिति और अवी और 8 सालों में उनकी दोस्ती के बीच आने वाले उतार चढ़ाव | जैसे अवि का बनी पर गुस्सा होना और फिर बाद में उसके गुस्से के कारण का खुलासा करना, मुखर्जी दोस्ती में होने वाली खटी-मिठ्ठी नोंक-झोंक को अच्छे से समझाते और दिखाते हैं।
रणबीर कपूर की जादूगरी फिर चल गई | फिल्म में रणबीर अच्छे दिखे हैं, अभिनय अच्छा है और डांस भी ऐसा किया है कि दर्शकों का दिल जीत लें | इस नए सुपरस्टार के लिए एक और अवार्ड इंतज़ार कर रहा है|
अब तो दर्शक रणबीर कपूर में शाहरुख का वो रोमांटिक अश्क ढूँढने लगे हैं जिसकी दिवानगी का अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता \ निर्देशक और निर्माता अपने मुनाफे के लिए ही सही, फिर वैसा ही एक रोमांटिक लवर बॉय की इमेज बनाने की पूरी तैयारी कर चुके हैं | यही से कहानी शुरू होती है अगले सुपरस्टार की, जो रणबीर ही होंगे अभी तक इसमें कोई शक नहीं |रणबीर के रूप में एक्टिंग और रोमान्स का एक ऐसा चेहरा उभर रहा है जो लोगो को मान्य है |
प्रीतम का संगीत फिल्म का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है| फिल्म का म्युजिक इसकी यूएसपी कहा जा सकता है\ बलम पिचकारीऔर बद्तमीज़दिलकबीराऔर घाघरागाने पहले ही सुपरहिट हो चुके हैं\ माधुरी दीक्षित के डांस ने घाघरा गाने में चार चांद लगा दिया| दरअसल यह फिल्म एक म्यूजीकल हिट है\ बरसों बाद होली पर प्रीतम ने ऐसा बेहतरीन गाना तैयार किया है जो कई साल तक होली की मस्ती में सुनाई देगा।
फिल्म अपने छोटे छोटे किरदारों से भी फायदा पाती है जैसे डॉली आहूवालिया और कुनाल रॉय कपूर वहीं फारुख शेख भी अपने दो सीन से आपका दिल जीत लेंगे| दीपिका-रणबीर का मीठा-सा लिप किस सीन भी दर्शकों को खीचने का काम करेगा\ ये जवानी है दीवानी ने ये मैसेज दिया है कि जिंदगी गुज़र जाएगी अगर आप रुककर उन लम्हों को जीना नही सीखेंगे तो।




बैनर –धर्मा प्रॉडक्शन और यू टीवी मोशन पिक्चर
निर्माता -करण जौहरऔरहीरू यश जौहर

निर्देशक –अयान मुखर्जी
कलाकार –रणबीर कपूर, दीपिका पादुकोण, कल्कि कोचलीन कश्यप, आदित्य रॉय कपूर, फारुख़ शेख़, तन्वी आज़मी, डॉली आहूवालिया,कुनाल रॉय कपूर, नवीन कौशिक, पूनम जगन्नाथन,माधुरी दीक्षित (गेस्ट रोल)|
कहानी –अयान मुखर्जी
संवाद -हुसैन दलाल
गीत –अमिताभ भट्टाचार्य
संगीत –प्रीतम

आवाज़ –मोहित चौहान, सुनिधि चौहान, अरिजित, हर्षदीप, रेखा भारद्वाज, शिल्पा राव, श्रीराम, विशाल
दादलानी,टोचि रैना और शलमाड़ी खोलगड़े
अवधि -  159मिनट
बजट –50 करोड़
मूवी टाइप -रोमेंटिक कॉमेडी


रांझना : हीर बिन रांझा

विजय कुमार जायसवाल

'रांझणा' एक प्रेम कहानी है| कुंदन (धनुष) एक दक्षिण भारतीय हिंदू है जो वाराणसी में अपने मां-बाप के साथ रहता है| उसके पिता (विपिन शर्मा) एक मंदिर में पुजारी हैं|बनारस का एक सीधा-सादा लेकिन मुंहफट और अक्खड़ लौंडा एक मुस्लिम लड़की से प्यार करता है| बनारस की तंग गलियों में बने घाटों के बीचनन्हा कुंदन अपने सबसे खास दोस्त मुरारी (जीशान) और हवलदार की बेटी बिंदिया(स्वरा भास्कर) के साथ दिन भर मौज मस्ती करता है। बिंदियाबचपनसेहीकुंदनकोचाहतीहैऔरउससेशादीकरनाचाहतीहै |पर कुन्दन का दिल तो काही और अटका पड़ा है|
10साल के कुंदन ने पहली बार जब जोया (सोनम कपूर) को देखा तो वह नमाज अता कर रही थी। पहली नजर में उसका दिल जोया पर ऐसा अटका कि स्कूल जाने से लेकर घर आने तक कभी उसने जोया का पीछा नहीं छोड़ा। उसका यह इश्क बचपन से शुरू हो जाता है और जवानी तक कायम रहता है|जब वो स्कूल में होता है उसी दौरान गंगा किनारे यूपी के आम लौंडों की तरह कुंदन ज़ोया को कार्ड देता है और शायरी के ज़रिए अपने प्रेम का इज़हार करने की कोशिश करता है।
एक दिन जब कुंदन अपने प्यार का सबूत देने के लिए अपनी कलाई काट लेता है तो ज़ोया सबके सामने उसे गले लगा लेती है|कुंदन के एकतरफा प्यार के लिएजोया की यह स्वीकृति है,खबर जोया के पिता तक पहुंचती है। जोया पहले अपनी फूफी के पास अलीगढ़ भेज दी जाती है। वहां से आगे की पढ़ाई के लिए वह जेएनयू चली जाती है। इधर बनारसी आशिक अपनी जोया के इंतजार में दिन गुजार रहा है। जेएनयू से जोया लौटती है तो फिर से मुलाकातें होती हैं। प्रेमी यानि धनुष को ये लगता है कि सोनम के लौटते ही दोनों की मोहब्बत फिर से परवान चढ़ेगी। लेकिन वक्त सबकुछ बदल देता है।जोया बातों ही बातों में उसे अपने जेएनयू के प्रेमी के बारे में बता देती है।
'रांझणा' का बनारस अपनी बेफिक्री, मस्ती और जोश के साथ मौजूद है। कुंदन, जोया, बिंदिया, मुरारी, कुंदन के माता-पिता, जोया के माता-पिता और बाकी बनारस भी गलियों, मंदिरों, घाट और गंगा के साथ फिल्म में प्रवहमान है।भारत के खूबसूरत शहर बनारस की अगर आपने सैर नहीं की तो फिल्म रांझणा देख आइए । बनारस की गलियों में नाचिए, कूदिए, वहां की होली का मज़ा लीजिए। जुलूस और शादियों में शामिल होइए और अगर रिक्शा वाला आपकी बातों पर ठेठ बनारसी लहजे में कुछ कहे तो हैरान न हो जाइए।ये बनारस हैभैया और यहीं की मिट्टी में ही जन्म लेती है कुंदन और ज़ोया की कहानी।
बनारसकेआंखोंकोपसंदआनेवालेसीनकाफीभातेहैं|'रांझणा'कीकहानीबनारसमेंरचीगईहै|कुंदनजोयासेप्यारकरताहै|उसकानामजाननेकेलिएपंद्रहचांटोंतककास्वादचखताहै| धनुषकईसीन्समेंअच्छेलगतेहैंऔरअपनीतरफसेकुंदनमेंपूरीजानडालतेनजरआतेहैं|धनुषनेअच्छीऐक्टिंगकरनेकीकोशिशकीहै|उनकेफ्लैटवनलाइनरकहीं-कहींबहुतअच्छेलगतेहैं|धनुष, परंपरागतहिंदीफिल्मोंकेहीरोकीतरहनहींदिखतेलेकिनउन्होंनेजिससहजतासेअपनेकिरदारकोनिभायाहैवोक़ाबिल--तारीफहै|अभय देओल नेएक तेजतर्रारछात्रनेताजसजीतकेकिरदारकोकाफीप्रभावीढंगसेनिभायाहै,उन्हेंजितनामौकामिलाउतनेमेंअपनेहाथदिखागए|सोनमकपूरबहुतख़ूबसूरतलगीहैंऔरउन्होंनेअपनेकिरदारकोभीउसीख़ूबसूरतीसेनिभायाहै|इंटरवलसेपहलेसोनमकाकिरदारकुछदबासालगताहै, लेकिनइंटरवलकेबादसोनमनेअच्छाकामकिया।मोहम्मदजीशाननेकुंदनकेदोस्तमुरारीकेकिरदारमेंजानडालदीहै।बिंदियाके रूप में स्वराभास्करभीधमालहैं|दोनोंनेफिल्ममेंजानडालदीहैऔरकहीं-कहींतोयेमेनलीड्सकोखाजातेहैं|थिएटरग्रुपअस्मिताकीशिल्पीमारवाहऔरअरविंदगौड़फिल्ममेंनजरआए।
हिमांशु शर्मा की कहानी ताज़ा तरीन है और वाराणसी की झलक साफ़ नज़र आती है|कुंदन, ज़ोया, बिंदिया और कुंदन के दोस्त मुरारी (मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब) का चित्रण बेहतरीन तरीके से किया गया है|इंटरवल से पहले का हिस्सा इतना मनोरंजक है कि पता ही नहीं चलता कि कब इंटरवल हो गया|फिल्मकारोमांटिकस्टोरीसेराजनैतिकबैकड्रॉपपरआना, दिल्लीकेजेएनयूइलेक्शन्सकीओरभटकना, कहानीकोसेकंडहाफमेंढीलाबनादेताहै।इंटरवल के बाद फिल्ममें राजनीतिक गतिविधियों पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया हैकुल मिलाकर फिल्म की कहानी काफी हटकर और दिलचस्प है| कहानी में ड्रामा, सस्पेंस, रोमांस, हास्य, इमोशन सब कुछ हैं|इंटरवल के बाद कहानी की रफ्तार सुस्त पड़ती है, लेकिन आखिरी 10मिनट की फिल्म का जवाब नहीं।
ए आर रहमान का संगीत कर्णप्रिय है|बनारसिया, तुम तक, टाइटल ट्रैक और तू मन शुद्धि गाने गुनगुनाने लायक हैं|फिल्म के गाने धीरे-धीरे और लोकप्रिय होंगे|इरशाद क़ामिल के बोल बहुत अच्छे हैं|बॉस्को-सीज़र की कोरियोग्राफी ज़बरदस्त है|श्रेया घोषाल, जावेद अली, हरिहरण, रबी शेरगिल और म्यूज़िक के कई उस्तादों की आवाज़ ने कहानी में जान डाली दी है।
बनारस का कोना-कोना,गलियां, रिक्शेवाले की टिप्णणी, गोलगप्पे वाले, ठेले कहानी में हर रंग बिखेर रहे हैं। सेकंड हाफ में दिल्ली दिखाई गई है। इंडिया गेट,इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन का कैंपस और अगर आप गौर से देखेंगे तो पंजाब में जो अभय का महल जैसा घर दिखाया गया है, वो असल में पटौदी पैलेस है।
'रांझणा' कुंदन और जोया की अनोखी असमाप्त प्रेम कहानी है।कुंदन अपनी जोया के लिए किसी हद तक जा सकता है।उसका दिल सीने के बीच में अटक गया है, इसलिए उसे बाएं या दाएं दर्द महसूस नहीं होता।
'रांझणा' की प्रेमकहानी शब्दों में नहीं बांधी जा सकती, क्योंकि कुंदन, जोया, अकरम, मुरारी, बिंदिया समेत अन्य किरदारों के भावोद्रक और अभिव्यक्ति का वर्णन मुश्किल है। फिल्म देख कर ही उन्हें समझा जा सकता है।जेएनयू के छात्र जीवन, राजनीति और अकरम के चरित्र में आनंद राय ने सरलीकरण से काम लिया है। छात्र राजनीति और जेएनयू के छात्र जीवन से वाकिफ दर्शकों के लिए ये घटनाएं अपेक्षाकृत सिनेमाई आजादी के सहारे गढ़ी गई है।लेकिन रांझना सिर्फ लव स्टोरी नहीं है, इसमें प्यार है,सियासत है, आम आदमी का संघर्ष है और एक प्रेमी का पश्चाताप है।
फिल्म के डायलॉग आम जिंदगी से जुडे हुए हैं। मसलन...'अबे ये रिक्शेवाले, पैसे न लेना मैडम से, भाभी है तुम्हारी'
एक ऐसी लव स्टोरी जो शुरू से आखिर तक आपको बांधे रखती है। दिल्ली और बनारस की लोकेशन, धनुष और मोहम्मद अयूब की बेहतरीन ऐक्टिंग।इनदिनोंबॉलीवुडमेंलवस्टोरियोंकादौरहै, तोफिल्मकेबॉक्सऑफिसप्रदर्शनकोलेकरकुछनहींकहाजासकतागली-मोहल्लेकेरोमांससेलेकरकॉलेजपॉलिटिक्सजैसामसालाशामिलहै |डायलॉगबाजीचटपटीहै \
रंझना का तमिल वर्जन भी अंबिकपाथी के नाम से जल्द ही आ हो रही है |

बैनर –इरोस इंटरनेशनल
निर्माता -कृषिका लुल्ला, सुनील लुल्ला|
निर्देशक –आनंद एल. राय|
कलाकार –धनुष, सोनम कपूर,अभय देओल,मोहम्मद जीशान, स्वरा भास्कर,कुमुद मिश्रा, सुजाता
कुमार, विपिन शर्मा, अयूब, शिल्पी मारवाह, अरविंद गौड़|
कहानी और संवाद–हिमांशु शर्मा
गीत –इरशाद कामिल
संगीत –ए.आर.रहमान
आवाज़ –श्रेया घोषाल, जावेद अली, हरिहरण, रबी शेरगिल
अवधि -  140 मिनट
बजट –35करोड़ रु.
मूवी टाइप रोमांटिक 


शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

सरकारी महिमा


आज जे एन यू के लिए बस मे बैठा .. 615 नंबर की बस(DL 1PC 9856) | काफी देर से इंतज़ार करने के बाद आई थी वो बस | बस के  अंदर घुसते ही मैंने ड्राईवर से पूछा भैया बस इतनी देर से क्यू आई और मुनिरका मे कुछ काम है मुझे
 क्या इसके बाद  भी कोई बस आने वाली है | उसने कोई जवाब नहीं दिया , क्योकि ड्राईवर जी ने कान मे इयरफोन  लगा रखा था, सुनते कैसे | मैंने उन्हे छूकर फिर पूछा भाई ये बस इतनी देर से क्यू आई और क्या इसके बाद भी कोई बस है  , उन्होने बड़ी परेशानी के साथ इयरफोन कान से निकाला और बोला -- क्या ? मैंने फिर पूछा |
वो हसने लगे और ड्राईवर ने  जवाब दिया कि भाई क्यू पूछ रहे हो ये सब ,, आप जानते ही हो हम सब सरकारी नौकरी वाले लोग है ,, हमारा कोई  टाइम नहीं होता...  और न ही सरकारी चीजें टाइम से होती हैं...  तो बस भला क्यू टाइम से चलने लगेगी | हमारी तो नौकरी ही इसीलिए होती है कि हमें सरकारी पैसा मिलता रहे और हम इसी तरह कान मे इयरफोन लगा के गाने सुनते रहें ,, काम वाम  से हम सरकारी लोगों का कोई वास्ता नहीं होता । ये सब तो बस दिखावा है|
ड्राईवर भाई साब ने आगे जो कहा वो तो और हैरान करने वाली बात है -- अब हमे ही देखिये हमारा डीपो से बस निकालने का टाइम 2 बजे दोपहर मे था पर हमने शाम को 5 बजे बस निकाली और बस यही एक चक्कर लगा के डीपो मे खड़ी कर देंगे | और हाँ इसके बाद वाली का तो कोई भरोषा मत करिए, हो सकता है कि वो डीपो से निकले भी ना और डीपो मे ही खड़े खड़े अपना टाइम पास कर दे ...
इतना सुनकर विश्वाश  हो गया कि हाँ ये सच है, क्यूकी आज इस सच से सामना हुआ है | और मै कर भी क्या लेता | ये सरकारी लोग जो ठहरे |
मैंने मुनिरका मे बस से नीचे उतरकर बस का नंबर नोट किया और यहा उसको लिख रहा हूँ -- DL 1PC 9856
जो की इस बात के सबूत के तौर पर है कि वो बस देर से निकली थी और जो ड्राईवर ने कहा वो सब सच मे भी होता है ...
इसे इससे संबन्धित अथारिटी को टैग या सेंड कर रहा हूँ बाकी इन सरकारी लोगो की मर्ज़ी  |

सोमवार, 1 अप्रैल 2013

Movie Review


हिम्मतवाला : हिम्मत का निकला दम

विजय कुमार जायसवाल

हिम्मतवाला नाम से पहली फिल्म 32 साल पहले 1981 में आई थी जो एक तेलगु फिल्म थी इसमे मुख्य भूमिका में जयप्रदा और कृष्णा थे | इसके 2 साल बाद यानि 1983 में हिम्मतवाला के नाम से जितेंद्र और श्रीदेवी को लेकर हिन्दी फिल्म बनाई गयी | ये दोनों ही फिल्मे अपने दौर की सुपर हिट फिल्मे रहीं और इसी नाम के साथ 2013 मे साजिद खान ने जो हिम्मतवाला बनाई है उसे देखकर बस यही कहा जा सकता है कि अच्छी बनी फिल्मों का रिमेक के नाम पर इससे घटिया मज़ाक और कुछ भी नहीं हो सकता | सेंसर बोर्ड को चाहिए कि इस तरह की पूरी फिल्म को ही कैंसिल कर दें क्योंकि अगर इस तरह की फिल्में बनती रहीं तो लोगों का रिमेक से तो भरोसा उठ ही जाएगा बेमतलब की लोगों की जेबें भी ठीली होंगी |

डाइरेक्टर साजिद खान ने इसे एक पीरियड फिल्म बनाने की कोशिश की है लेकिन इस फिल्म की सबसे बड़ी समस्या भी यही है कि वो खुद ही नहीं तय कर पाती कि वो है क्या |
जितेंद्र और श्रीदेवी की नकल करने के चक्कर मे इसके कलाकार अपनी असली ऐक्टिन्ग भूल गए हैं | नए दौर मे बनी इस फिल्म को पुराना दिखाने की कोशिश निरर्थक ही साबित हुयी है, जैसे नए जमाने के स्टंट और ऐक्शन सीन दिखाने के बाद 80 के दशक के गाँव की कहानी में हीरो को ले जाकर पटक देना, क्रिकेट मैच की कमेंटरी से ये याद दिलाने की कोशिश करना कि आप 2013 में नहीं 1983 मे बैठे हैं |
फिल्म की कहानी मूलतः एक गाँव की है जिसका नाम है रामनगर जहां दिल्ली से हीरो रवि (अजय देवगन) अपनी सताई हुयी माँ सावित्री (ज़रीना वाहब) और बहन पद्मा (लीना जुमानी) के साथ वापस जाता है | इस गाँव मे शेर सिंह (महेश मांजरेकर) और उसके साले नारायण दास (परेश रावल) की चलती है, पूरे गाँव में  किसी की हिम्मत नहीं जो इनके सामने अपनी जुबान खोल सके | इन्होने ही हीरो के परिवार को बर्बाद कर दिया था और हीरो के बाप के कातिल भी यही हैं | हीरो रवि इसी बात का बदला लेने शहर से गाँव आता है | लेकिन यहाँ उसे अपने कट्टर दुश्मन शेर सिंह की बेटी रेखा (तमन्ना भाटिया) से प्यार हो जाता है | फिल्म की हीरोइन को भी अपने बाप की तरह ही गाँव वालों को सताने मे मज़ा आता है और बात बात पर “आई हेट गरीब्स” का जुमला छोड़ती रहती है | लेकिन बाद मे उसका दिल पिघल जाता है और वो हीरो रवि का साथ देने लगती है और प्यार भी करने लगती है और इस तरह हीरो नए नए किस्म के ऐक्शन के साथ मार धाड़ करते हुये अपना बदला पूरा करता है और हिम्मतवाला कहलाता है, लेकिन उसको इसके लिए ये कहने की भी जरूरत पड़ती है कि “जब तक औरत पर होगा जुल्म तब तक इंसान बनेगा हिम्मतवाला” |
फिल्म में दो पुराने गानों को रिपिट किया गया है, नैनो मे सपना ... और ताकि रे ताकि रे ... को लेकिन इन गानो में श्रीदेवी का जो असर है वो तमन्ना भाटिया बिल्कुल भी नहीं दिखा पायी हैं इसलिए श्रीदेवी से तुलना भी छलावा होगा | सोनाक्षी सिन्हा पर फिल्माया गया आईटम टाइप गाना “थैंक्क गॉड इट्स फ्राइडे”  भी एकदम ठंढा ही है जो इस तरह की फिल्म को बर्बाद ही करता है | धोखा धोखा और बम पे लात गाना भी इसी तरह का है |
ये फिल्म रिमेक के साथ साथ फिल्म होने पर भी सवालिया निशान है जिसे देखने  दर्शक पैसे देकर सिनेमा हाल तक तो पहुंच जाता है लेकिन वो खुद को ठगा हुआ महसूस करता है और कहता रहता है कि यार कब खतम होगी बहुत बोरिंग है, इससे अच्छा तो जितेंद्र और श्रीदेवी वाली पुरानी हिम्मतवाला ही देख लेते | फराह अखतर ने डॉन और करण मल्होत्रा ने अग्निपथ की रिमेक बनाकर ऐसी रिमेक फिल्मों के लिए जो रास्ता बनाया था साजिद खान उसे अपने ही स्टाइल मे पलीता लगा देते हैं | यह फिल्म पूरी तरह से “साजिद खान का, साजिद खान के लिए, साजिद खान के द्वारा” बनाई गयी फिल्म है | जिसके लिए आप सब को अफसोस करने और जेबें ठीली करने की कोई जरूरत नहीं है |

हिम्मतवाला : एक नज़र मे 

बैनर – यू टीवी मोसन पिक्चर्स
            पूजा इंटरटेनमेंट इंडिया लिमिटेड
निर्देशक – साजिद खान
निर्माता – वाशु भगनानी, सिधार्थ राय कपूर, रूनी स्क्रूवाला
स्क्रीनप्ले – साजिद खान, फरहाद, साजिद
स्टार कास्ट – अजय देवगन, तमन्ना भाटिया, महेश मांजरेकर, परेश रावल, अध्ययन सुमन, ज़रीना वहाब और लीना जुमानी 
आवाज़ – सुनिधि चौहान, श्रेया घोषल, ममता शर्मा,बप्पी लहीरी, मिक्का सिंग, अमित कुमार 
गीत – समीर,सचिन जिगर
संगीत – साजिद वाजिद
म्यूजिक कंपनी – सारेगामा- एचएमवी
डांस डाइरेक्टर – फराह खान, गणेश आचार्या, चिन्नी प्रकाश
 ऐक्शन – जय सिंह निज्जर
रिलीज डेट – 29 मार्च 2013
अवधि – 2 घंटे 30 मिनट
बजट – 60 करोड़









शुक्रवार, 4 जनवरी 2013


साल बदल गया है, और विश्वास करूँ तो सब कुछ बदल रहा है, जिसे महसूस भी किया जा सकता है, आशा नहीं करूंगा पर अगर दुआ कुछ होती होगी तो करूंगा, ये बदलाव मेरी तरह न बीते | ये झूठ नहीं है कि दुनिया में लोग जश्न मना रहे हैं और ये भी झूठ नहीं है कि अनगिनत लोगों की अनगिनत समस्याएँ अभी भी बाकी हैं |
आज जब तारीख और साल बदल रहा है, मेरा कलेजा चाक हो रहा है | हॉस्पिटल के आई सी यू में आज छ्ठा दिन, सब बड़ा फ्रैंडली सा हो गया है लेकिन लोंगों की तकलीफ़ों के बीच मन भारी सा हुआ है, सर से लेकर पाँव तक बदन अजीब तरह की चुभन से भर गया है, रह-रह कर दिल हिम्मत हार जाता है, पर मन का विश्वास ताकत दे रहा है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा | मै हॉस्पिटल से खुशी-खुशी घर लौट जाऊं और लोगों की समस्याएँ हल हो जाएँ | आगे की तारीखों मे सब के लिए खुशिओं को ढुढ़ रहा हूँ, इसी तलाश के साथ आज आप सब का ............. 

सोमवार, 12 नवंबर 2012


                                                         जय भीम
मैने एक दिन लिखा था और आज फिर कह रहा हूँ कि अगर धर्म नाम की कोई चीज होती है तो डा. भीम राव अम्बेडकर अपने आप मे एक धर्म हैं और अगर ईश्वर नाम की कोई चीज होती है तो डा. भीम राव अम्बेडकर ईश्वर हैं, जिसे लोग देख सकते थे, सुन सकते थे, जिसके विचारों से रूबरू हो सकते हैं और उसे समझ सकते हैं और जब तक ये इन्सानी क़ौम जिन्दा रहेगी तब तक डा. भीम राव अम्बेडकर अपने आप मे एक धर्म और ईश्वर के रूप मे रहेंगे और परिवर्तन करते रहेंगे । जय भीम आज सिर्फ दो शब्द नही, ये समाज का वो परिवर्तन है और वो उर्जा है जो उसे जीवित रखता है आगे बढ़ाता है ।
मेरे जन्मस्थली के गाँव और उससे सटे सैंतीस गावों में दिलीप मंडल कभी नही आये हैं और ना ही यहाँ लोग फेसबुक इस्तेमाल करते हैं, जो लोगों को बता सके डा. अम्बेडकर के बारे में (ये तो बस एक नाम है और भी ऐसे कई लोग हैं जो ऐसे परिवर्तन में आन्दोलनरत हैं) यहाँ घूमने पर और लोगों से मिलनें पर आपको ज्यादातर लोग नमस्ते, राम-राम, जय श्री राम, गुड बाय बोलते नही दिखेंगे ,,, क्योंकि यहां जय भीम बोला जाता है और विश्वास करता हूँ कि ये सिर्फ यहीं नही बल्कि इस देश के सभी जगहों पर और विश्व के कई देशों में बोला जाता होगा । आज  जय भीम सिर्फ जागरुकता की निशानी नही बल्कि आस्था का बिषय भी है । खुशी है कि आज क्षत्रीय और ब्राहमण वर्चस्व (पूर्वाग्रह) टूट रहा है और आगे भी टूटता रहेगा जिस दिन जय भीम की इस सच्ची आस्था में परिनर्तनशील विचारों का आन्दोलन और जागरुकता मिल जायेगी पूर्वाग्रह पूरी तरह से अपना बोरिया बिस्तर समेट लेंगे ।
(और हाँ क्योंकि इसलिए भी कि शूद्र द राइजिंग हो चुका है............)

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

'यश' हमेशा रहेगा

आज हिंदी सिनेमा के मूर्धन्य निर्देशक .... रोमांस रचाने वाले कहानीकार और दिल को पागल और दीवाना कर देने वाले  हर दिल अजीज इन्सान 'यश चोपड़ा' जी हमारे इस आभासी दुनिया को हमेशा - हमेशा के लिए छोड़ के  चले गए और इस नफरत भरी दुनिया में सबको प्यार सिखा गए ..........
ये दुनिया उन्हें हमेशा याद करेगी ............
यश चोपड़ा को भावभीनी श्रधांजलि ............

बुधवार, 5 सितंबर 2012

मेरे शिक्षक मेरी ताकत .......


शिक्षक दिवस की अनंत शुभकामनाएं ......
मेरे प्रथम शिक्षक मेरी ""माँ"" , मेरे अपने जीवन के साथ- साथ सामाजिक जीवन मे भी शिक्षक की भूमिका मे रहे मेरे ""पिता जी"" , मेरे स्कूल,कॉलेज,विश्वविद्यालय और आई आई एम सी के अभी तक के सफ़र के सभी गुरुजन 
, बचपन से लेकर आज तक मै जिन जिन से थोड़ा भी सीख पाया हूँ और जिनसे सीखने , समझने और बोलने - सुनने की ताकत मिलती रहेगी उन सभी लोगों को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ ....... आप सभी स्वीकार करें ...... और विश्वास रखता हूँ कि एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए आप सभी से सांशों की अंतिम लड़ी तक सीखने को मिलता रहेगा .......